जननी
जिसने यह विश्व निर्माण किया ,
जिसने यह जीवन दान दिया।
अपना सर्वस्व लूटा करके
सबका जीवन है संवार दिया।।
उसका कर कोमल जिस सिर पर
है मिला उसे वरदान अभय।
सब कुछ पा जाता है वह नर
हो जाए जग में मृत्युंजय।।
उसकी ममता की छांव जहां ,
पर जाए उसके पांव जहां,
उर्वरा हो जाए मरुभूमि
और धरा स्वर्ग बन जाए वहां।।
त्रिदेव सदा जिसके आगे
हैं रहते बांधे हाथ खड़े।
सुर,नर,ऋषि और ज्ञानी भी
हैं पग में जिसके शीश रखे।।
जो ईश्वर से भी बढ़कर है,
तीनों लोकों में पूजनीय,
जी हां ! वह मेरी जननी है,
हां !हां ! हम सबकी जननी है।।
हम क्यों उनको दुःख देते हैं ?
भूल सभी उपकारों को।
विदीर्ण हृदय कर देते हैं
अपनी कूवचन कटारों से।।
हम क्यों अनुगृहित न होते हैं ?
पाकर उनसे प्रमोद सदा।
क्यों उस ममता भरी हृदय में
दे देतें हैं गहरी व्यथा ?
आओ हम मिलकर प्रण करें
ना उनको कभी सताएंगे।
निज स्वार्थ,महत्वाकांक्षा के लिए
ना उनको कभी रुलायेंगे।।
हैं धन्य-धन्य मेरी जननी ।
हैं धन्य धन्य तेरी जननी ।
हैं धन्य हम सबकी जननी।
हैं धन्य प्यारी मैया अपनी।।