” जननायक “
” जननायक ”
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अभिमान और घमंड शायद ही किसी का रहा है !
ये बातें हम नहीं कहते ये तो इतिहास कह रहा है !!
हमें कुछ आस रहती है कोई हमदर्द मिल जाये !
हमें अपना बनाये हमारे दुःख के भागीदार बन जाये !!
हम चुन के उनके हाथों में अपनी जागीर देते हैं !
उन्हें ‘ विजय तिलक” से उनका अभिनन्दन करते हैं !!
हमें यह चाह होती है किहमारे भाग्य जागेंगे !
पुराने जख्मों को अपने हाथों से उनको मिटायेंगे !!
परन्तु लाख वादे करके यदि हम भूल जाते हैं !
वही फिर जख्म हमलोगों के हरे हो जाते हैं !!
गरजते बादलों के शोर शायद ही बरसते हैं !
कहो फिर एक से दिन वर्षों किसके साथ चलते हैं ?
जोर से जो बोलता हैं उसे हम कुछ “और “कहते हैं !
सत्ता के शीर्ष पर रहकर उसका अपमान करते हैं !!
अधिकारों के हनन को देखकर कौन चुप रहेगा !
इतिहास के पन्नों में हमें सभी दोषी कहेगा !!
कब तलक यूँ हम लोगों को द्रिग्भ्रमित करते रहेंगे ?
मौलिक बातों को भला नजरंदाज हम कैसे करेंगे ?
हम तो उन्हीं के नक़्शे कदम पर चलना चाहते हैं !
पर वो “झूठ पर झूठ” बोले चले जाते हैं !!
“जननायक” ऐसा मिले जिसे देशहित का ज्ञान हो !
लोगों की आकांक्षाओं का सब दिन ही सम्मान हो !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका