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29 Oct 2020 · 1 min read

जनता की आवाज

जनता की आवाज
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अखबार हो या मीडिया चैनल
सबकी माया निराली है,
अब तो जनता की बात
करने में हिचकिचाते हैं।
चैनल टी आर पी के लिए ही
परेशान रहते हैं,
अखबार मालिक के अनुसार
चलने के लिए विवश हैं।
क्या करें आखिर ये भी
सब तो बेचारे हैं,
पेट की खातिर परेशान सारे हैं।
जनता की आवाज कौन बने?
अपनी सिरदर्दी कौन करे?
जनता का क्या?
वो कल भी हताश, निराश, परेशान थी
आज भी है और
कल भी रहेगी।
जनता से भला कौन यारी करे?
क्यों जनता की तरफदारी करे?
जनता भी तो होशियार है
नेताओं की गुलाम है,
अपने अधिकार फेंक रही है
यही नहीं अपने को बेच भी रही है।
लोग कहते हैं
सांसद विधायक आते नहीं हैं।
अब भला वो क्यों आने लगे?
अब तो हर घर में नेता हैं।
अखबार चैनल भी करें तो क्या?
आखिर वे जनता की आवाज बने
या अपने बच्चों का पेट भरें।
कौन सा अखबार चैनल उनका है
वो भी तो नौकर ही हैं,
मालिक के हिसाब से रहना पड़ता है
जनता की छोड़िए
इन्हें भी बहुत कुछ सहना पड़ता है।
✍ सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
1 Like · 211 Views
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