जनतंत्र को ग्रहण
‘जनतंत्र/संविधान
अगर सूर्य हैं
तो उसकी रश्मियां हैं-
स्वतंत्रता-समता-बंधुता-न्याय.
फिर भी देश में
चहुंओर फैला है तम
अनाचार, भ्रष्टाचार
बलात्कार, तमाम अपराधों
का मचा है कोहराम
लोग अपने आप में लीन.
बने हुए हैं-
दूसरों के प्रति बेरहम.
कैसा जनतंत्र है?
कैसा संविधान है?’
चहुंओर यही शोर मचा है.
जनतंत्र-संविधान
तो सदा है जन-जन
के साथ उनकी रक्षा और
कल्याण के लिए
किंतु अभी
ग्रहण लगा है.
जनतंत्र/संविधान पर
उसे ग्रसे हुए हैं
सामंतवाद-पूंजीवाद के
राहु-केतु
कभी-कभी धूमकेतु
की तरह उत्पात मचा
जाती हैं पुरानी
जर्जर मान्यताएं
और कोहराम मचाकर
जनतंत्र/संविधान को
बदनाम कर जाती हैं
जनतंत्र-संविधान
की रक्षा के लिए
जन-जन को
सतत प्रहार करना होगा
सामंतवाद-पूंजीवाद पर
पुरानी मान्यताओं पर.
-23 जनवरी 2013
दोपहर 3 बजे