जद है
मेरी अपनी जद है तुम्हारी अपनी जद है
तेरे मेरे दरमयाँ वैसे एक बनी सरहद है
ये सरहद अक्सर खिंच जाती है
जिम्मेदार हालात हैं और गलफमियां भी
वैसे होती तो हद की भी हद है
मेरी अपनी जद है तुम्हारी अपनी जद है
मैं सोचता हूं के उम्र कम है जिन्दगी के लिए
पर मैं क्यों नहीं जी पाता हर किसी के लिए
वैसे मेरे दिमाग़ में उलझने बेहद हैं
मेरी अपनी जद है तुम्हारी अपनी जद है
उलझनें तो बस उलझाने का काम करतीं हैं
सुलझाने जाओ तो ये कहीं और उलझती हैं
उलझने सलाख हैं तो हम फहद है
मेरी अपनी जद है तुम्हारी अपनी जद है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
जद -पहुँच
सलाख – लोहे का छड़
फहद – तेंदुआ