जताकर प्यार
जताते प्यार बूँदों – सा, तुम नदिया नहीं बनते ।
मुझे जीने नहीं देते, मुझे मरने नहीं देते ॥
नजरों में तू – ही – तू, हर शै में तेरी खुशबू।
तुझे भूलूँ तो मैं कैसे, तुम पीने नहीं देते ॥
लहरों – सी मुझसे दूर,चली जाती हो बल खाकर ।
मैं साहिल बैठा हूँ तन्हा, मुझे क्यूँ छू नहीं लेते॥
तुम हो धार कटारी की, तुम श्रृंगार बिहारी की ।
अमृता बन क्यूँ साहिर की, नगमों में नहीं ढलते ॥
हवा के तेज झोंके – सी, गुजर जाती हो पहलू से।
नशे में झूमूँ मैं दिनभर, मुझे क्यूँ थाम नहीं लेते ॥
“अमित” को यार छेड़ते, लेके नाम तेरा ही।
मुझे अच्छा तो लगता है, मगर अच्छा नहीं कहते॥