जज साहब गुनाह कबूल है !
मेरी पड़ोसी से अनबन हो गई,
उसने गुस्से में रपट लिखाई।
मुकदमा दायर हुआ मुझ पर,
पुलिस ने कोर्ट में पेश किया।
जाने कैसा मुझ पर केस किया।
मेरी फरियाद सुनी नहीं गई,
तारीख नई हर बार दी गई।
नोटिसो का फसाना शुरू हुआ,
वकीलों का आना जाना शुरू हुआ।
कोर्ट के चक्कर में लगाता रहा,
अपनी आपबीती सुनाता रहा।
मेरा वकील मुझे भरमाता रहा,
नई नई तरकीब बताता रहा।
समन पर समन आते रहे,
सुख चैन सब मेरे जाते रहे।
मेंने पड़ोसी से भी फरियाद की,
मुकदमा वापस लेने की बात की।
वो तो मुझे फसा कर खुश था,
सिस्टम के रवायिए से संतुष्ट था।
में बेवजह ही परेशान होता रहा,
यहां वहां जाकर मैं रोता रहा।
जज साहब से बोला में जाकर,
सरकार बेकसूर हूं मुझे छोड़िए।
बोले जज साहब मुस्कुरा कर,
गुनाह कबूल पहले ऐसा बोलिए।
में सिस्टम से इतना त्रस्त था,
कोर्ट के चक्कर लगा पस्त था।
जज साहब से जाकर बोला,
में मानता हूं जो मेरी भूल है।
जज साहब गुनाह कबूल है।
गुनाह कबूल कर जुर्माना भरा,
बिना गलती के इतना सब सहा।
न्याय की व्यवस्था भी खूब है,
उसे मिलता है जिसका रसूक है।
गरीबी यहां सबसे बड़ी भूल है,
जज साहब गुनाह कबूल है।