जज्बात
जज्बात (लघुकथा)
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कपिल की माँ को वह दिन याद आ गया जब माँ ने बहू अंजनि को घर आने पर यह कहते हुए
” कि यह घर तुम्हारा है और इस घर की हर मान मर्यादा तुम्हारी है “। घर की सारी चाबियाँ अंजनि को सोंप दी थी अंजनि भी खुश थी कि उसको एक नया हँसता संसार मिला है ।
अंजनि और कपिल की शादी को जब लगभग अर्ध दशक बीत चुका तो माँ को चिंता होने लगी कि उसकी बहूँ को माँ बनना चाहिए और वंश का नाम चलाने वाला होना चाहिए ।
प्राय : घर परिवार एवं मिलने वाले अक्सर पूछ लिया करते कपिल की माँ सूनो , ” तुम दादी �न बन रही “।
आसपास के लोगों की बातें सुन कपिल की माँ को भी लगता कि उसको दादी बन जाना चाहि�ए , यह सोचते हुए बहूँ को लाड़ करते हुए कहती , “कि बहूँ इस आँगन में कोई खेलने वाला ले आओ “।
अंजनि और कपिल ने वैध हकीम से ले कर बड़े से बड़े डॉक्टर का इलाज कराया , मगर परिणाम शून्य रहा ।
सन्तान प्राप्ति के लिए मंदिर , मस्जिद हर जगह घुटने टेके पर सफलता न मिली ।
एक बार पड़ोसन ने कपिल की माँ को उलाहना देते हुए कहा , “अगर इस बहू से तुम दादी न बनती तो कपिल का दूसरी ब्याह कर दो । ”
अन्दर खड़ी बहू ने जब सुना तो उसके पांव के नीचे से जमीन सरक गई और चक्कर खा गिर पड़ी । कपिल ने उसे सँभाला और पानी की छींटे डाल होश में लाया ।
जब आँखे खुली तो कपिल से रोती हुई बोली , ” कपिल , यदि मैं माँ नही बन सकती हूँ तो तुम मुझे छोड़ दूसरी शादी क्यूं न कर लेते । देखो प्रिय ! लोग क्या – क्या कहते है ।
चूँकि विवाह से पूर्व दोनों बचपन के साथी रहे थे , इसलिए कपिल को किसी भी स्थिति में रिश्ते का टूटना स्वीकार्य न था दिन बीतते गये पर अंजनि की बैचेनी भी दिन दोगुनी रात चौगुनी बढ़ने लगी ।
हालांकि माँ से ज्यादा जितना चिंता इस बात की पड़ो�सियों को थी । हमारा समाज भी ऐसा है कि घर के अन्दर जो कुछ घटित हो रहा हो , घर के सदस्यों से ज्यादा पड़ोसियों को पता रहता है ।
अचानक एक दिन अंजनि को माँ बनने का आभास हुआ तो उसकी उजड़ी बगियाँ में बासंती फूल खिलने लगे । हर अदा नृत्य कर उठी । सभी लोग बहुत care करने लगे आखिर वंश चलाने वाला आने वाला था ।
पता नहीं कब से इन्तजार था बाबा को कि उसके कुल का चिराग आयेगा । बहुत आशायें थी लेकिन अंजनि के मन में भावी सन्तान को ले बड़ी उहापोह थी सबकी इच्छा उसकी थी लेकिन वह दिन भी आ पहुँचा जब आँगन में गृहलक्ष्मी की चिनगारी गूँजने लगी ।
सब खुश थे केवल अंजनि को छोड़कर क्योंकि पड़ोसियों के तानों से घायल अंजनि के मन में यह बात अच्छी � तरह बैठ चुकी थी कि पुत्र ही वंश बढ़ाने वाला है भावी पीढी का वाहक है ।
समाज बोलता है यह बात समाज की निगाहों से स्पष्ट होने लगी थी लेकिन जन्म विधाता की देन है यह सोच कर अंजनि की ईश्वर के प्रति भक्ति रंग लाई पर एक बेटी की माँ के रूप में न कि पुत्र की माँ के रूप में । परम्परागत समाज की यह विशेषता है कि तकनीकी की ओर बढ़ा पर सोच परम्परागत ही है ।
यहीं वजह थी कि अंजनि ने कपिल से विवाह पूर्व बचपन की क्रीडाओं और अठखेलियों के बीच सुनहरी सपनों का जो ताना – बाना बुना था वो उसके माँ बनने के बाद भी अधूरा था उसने पुत्री को जन्म दिया था लेकिन लोगों की चाह पुत्र की थी ।
घर के बुजुर्गों की आशाओं पर तुषारापात हुआ क्योंकि पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हुई । अंजनि को ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके जज्बातों का खून हो गया हो और वह लोगों की आशाओं पर खरी न उतर पा रही हो ।
डॉ मधु त्रिवेदी