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14 Jun 2023 · 1 min read

जज़्बात-ए-दोस्ती

जज़्बात-ए-दोस्ती
एक नायाब जज़्बा है
शरारतों का मासूम क़स्बा है
शोला भी है, शबनम भी है ,
ख़ुशी भी है,गम भी है।
एक खासमखास सवाब है ये ,
हर मुश्किल का जवाब है ये ,
हौसलों का हवाईजहाज़ ये,
राज़ों का मटन कबाब है ये।
एक कोहिनूर है
जज़्बात-ए-दोस्ती,
मिल जाय जो ये तो
फिर ज़िंदगी नहीं रहती पोस्ती।
उमंगो के काफिले होते है,
आवारगी के टीले होते है,
एक जलता जूनून सा रहता है,
एक अमन भरा सुकून सा रहता है।
अरमानों के अलग ही अंदाज़ होते हैं,
ख्वाबों के जुदा से अल्फ़ाज़ होते हैं।
एक टशन है दोस्ती,
एक व्यंजन है दोस्ती,
शहनाई है निश्छल प्यार की,
एक सुरमई अंजन है दोस्ती।
और क्या कहूँ
बहुत कुछ है दोस्ती,
हँसता है दोस्त
तो हँसती है दोस्ती
और रोता है दोस्त तो
रोती है दोस्ती।
सच बड़ी इररैशनल होती है दोस्ती,
इसका कनेक्शन सीधा दिल से होता है
इसलिए थोड़ी नहीं पूरी इमोशनल होती है दोस्ती।

सोनल निर्मल नमिता

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