*जग से चले गए जो जाने, लोग कहॉं रहते हैं (गीत)*
जग से चले गए जो जाने, लोग कहॉं रहते हैं (गीत)
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जग से चले गए जो जाने, लोग कहॉं रहते हैं
1)
निष्ठुर नियम जगत के पाए, अपनों को खोने के
नियम बुढ़ापे में मिलते हैं, काया को ढोने के
कष्ट मरण के हैं असह्य पर, सारे जन सहते हैं
2)
सत्य सनातन जन्म-मरण की, यात्रा चलती जाती
नए-नए लोकों में जा फिर, धरा-धाम पर आती
स्वर्ग सृष्टि में कहीं बस रहा, ज्ञानीजन कहते हैं
3)
रिश्ते-नाते नेह-प्रेम के, कभी न विस्मृत होते
यादों में जीवित रहते हैं, जन जिनको हम खोते
ऑंधी आई महाकाल की, सबल वृक्ष ढहते हैं
जग से चले गए जो जाने, लोग कहॉं रहते हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451