जग की तारणहारी
शीर्षक-जग की तारणहारी
नारी है जग निर्माता, नारी है भगवान की माता।
नारी ने बृह्माण्ड रचा, नारी जाति से है अस्मिता।।
लोक लाज़ के भय से, नारी ने अपमान सहा।
परिवार, समाज और देश के हित में, सदैव योगदान रहा।।
जिसने दिया जन्म,मानव तूने उसी पर कहर ढहा।
बाल विवाह, विधवा विवाह, पुनर्विवाह,दहेज प्रथा, अशिक्षा, अंधश्रद्धा के नाम पर होती रही स्वाहा।।
जागों – जागों नारी जाति, स्वाभिमान से जीना यहां।
है पुरुष प्रधान समाज, पर नारी बिन नहीं बजूद जहां।।
हिम्मत, साहस, धैर्य,वात्सल्य,ममता,
क्षमा,विनम्रता , करूणा की है तूं खान।
अबला नहीं सबला है तूं ,कर तूं अपनी पहचान।।
सरस्वती, लक्ष्मी,दुर्गा , अन्नपूर्णा, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्याबाई, सीता,इंद्रा गांधी सब में विद्यमान तूं।
इतिहास है प्रमाण,हर युग में लें जन्म, करती रही जगत का कल्याण तूं।।
हूं मैं आधुनिक काल की नारी,हर क्षेत्र में है बर्चस्व हमारा।
नभ से लेकर भू तक, गुणगान कर रहा है जग सारा।।
मां,बेटी,बहन , पत्नी,बुआ, नानी, दादी, चाची, रचती है, भिन्न- भिन्न रिश्ते ,नारी।
समाज के रक्षक,मत करो अत्याचार, नहीं तो प्रकट होगी,लेकर नौ दुर्गा रूप नारी।।
साधना ,आराधना, वंदना ,पूजा ,आस्था,
आरती सभी जगह है अस्तित्व तेरा।
राष्ट्रीय महिला दिवस पर, साहित्य सुमन करूं समर्पित ,ये सौभाग्य है मेरा।।
हैं आधी आबादी नारी, एकजुट हो तू नारी।
स्वाभीमान के लिए ईंट से ईंट बजा देना, तूं है जग की तारणहारी।।
विभा जैन (ओज्स)
इंदौर ( मध्यप्रदेश)