जगन्नाथ रथ यात्रा
जगत के नाथ जगन्नाथ ,
दर्शन देने निकले हैं l
भगत से मिलने को आतुर ,
चौखट पार कर निकले हैं ll १ ll
सुदर्शन धारी श्री जगन्नाथ,
माता सुभद्रा और बलदाऊ के साथ l
परमानन्द देने भक्तों को,
मदन मोहन मन को हरने निकले हैं ll २ ll
बैठे हैं जब से रथ पे वो ,
झूमा ब्रह्माण्ड हर्षित हो l
भक्ति के रस में भीगे हुए,
भक्तों की टोली निकली है ll ३ ll
नेत्रों में लिए करुणा का सागर ,
चले जगन्नाथ यू सज धज कर l
दोनों हाथों से भर भर कर,
कृपा बरसाने निकले हैं ll ४ ll
नहीं हटती नजर उनसे ,
जिनका मुख चंद्र चंचल सा l
कोटि सूर्य भी लगे फीके,
जब जगन्नाथ रथ पे आते हैं ll ५ ll
कीर्तन मृदंग और करताल ,
मिले जब इनके सुर और ताल l
भगत नाचे मगन होकर,
यूँ गौरांग को रिझाने निकले हैं ll ६ ll
आज दिशा दशा का संज्ञान कहाँ ,
बस रथ और रस्सी पर ध्यान यहाँ l
हरी कीर्तन से गूँजा परिवेश जहाँ
संन्यास गृहस्थ सब मग्न वहाँ ll ७ ll
कटे जन्म मृत्यु का चक्कर ,
पकडे जो रथ की रस्सी को कसकर l
ह्रदय तृप्त हो जाये भक्ति रस पीकर ,
यात्रा में नाचे जो मगन होकर ll ८ ll
जब जब रथ के पहिये बढ़े ,
भक्तों ने कूंचे से कंकड़ गिने l
जगन्नाथ के तुच्छ सेवक हैं हम ,
सोचके बस यही ह्रदय निर्मल किये ll ९ ll
बसों सबके ह्रदय में, हे जगन्नाथ ,
जन्मजन्मांतर की यात्रा से दे दो विश्राम l
जीवन बीते बस गाते हरी का गान l
क्षण अंतिम हो,बस मुख से निकले श्री जगन्नाथ ll १० ll