जगत है तमाशा
**जगत है तमाशा**
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यह जगत है तमाशा
जैसे पानी में पताशा
दुनिया है दो दिन की
मन लगाया बेतहाशा
हर शख्स है मदारी
करतब खूब दिखाता
मुश्किल दुनियादारी
मनुज दिल लगाता
रंगों भरी है अंजुमन
अकेला है रह जाता
दुनिया आनी जानी
कोई ठहर न पाता
चिलमन की ओट में
अपने राज छिपाता
खुशियों की बौछारें
गम को है भूल जाता
मनसीरत भी बेइंतहा
निज हक है जमाता
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)