जगत व्यवहार
दोहा
निंदा कोई यदि करे ,भीतर रहे प्रसन्न ।
अंतर्मन निर्मल करे ,सहचर वह संपन्न ।।1
पत्थर पारस नाम -सा ,बने जगत व्यवहार।
लौह छुए कंचन बने ,निष्कलंक संसार ।।2
दृढ़ निश्चय कर देख ले ,दुनिया अपनी ढाल ।
काज सभी संभव लगे ,चमके अनुदिन भाल ।।3
दुर्बलता का चिह्न है ,भरे निराशा आस ।
अंधी लाठी छोड़ कर ,मन में भर उल्लास ।।4
नीच संग को त्याग दें ,मित्र ,प्रीति से दूर ।
करे कोयला हाथ को ,काला नित्य जरूर ।।5
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’शोहरत
मौलिक स्वरचित सृजन
वाराणसी
22/2/2022