जगत की माएँ
बुनती ही रहती हैं
जगत की माएँ
दुआएँ
अपने बच्चों के लिए
दिन रात
युगों युगों से
उसी गति से
बुनती आ रही हैं
तोड़ कर
फेंक दी जाती हैं
घर की सफाई के वक़्त
चौखट के बाहर
सारी दुआएँ
जालों की मानिंद
मकड़ियों के
समेत
सहसा
उठती हैं वो
फ़िर
कहीं और जाकर
बुनने लगती हैं
दुआएँ अपने बच्चों के लिए
दोगुने साहस के साथ
जगत की सारी
माएँ,,,,