जख्म
इस जख्म को हरा रहने दो
यह मुझे कमजोरी बताता है
आगे मुझे क्या करना है
इसका हमेशा बोध कराता है
जिंदगी के कठिन रास्ते
कैसे करूँ में पार
कुछ तो जुगत लगाना होगी
इन हरे जख्मो के साथ
जख्म ही बताएंगे क्या करूं मैं अब
अभी तो और सहना है
मंजिल अभी है दूर
वो जीवन भी क्या है
जिसमें मिले न जख्म
जख्म सहते जाइए
मंजिल मिलेगी जरूर
– विवेक श्रीवास्तव