जख्म सीनें में दबाकर रखते हैं।
जख्म सीनें में दबाकर रखते हैं।
एक वो अहले सियासत हैं जो अपने खातिर,
मजलूमों को भी हर रोज लड़ाकर रखते हैं,
एक हम सारे दर्द सहकर भी,
जख्म सीनें में दबाकर रखते हैं।
राय सबकी जुदा जुदा है यहां,
हम मगर दोस्त बनाने का हुनर रखते हैं
कौन आयेगा उसे बोलो तसल्ली देने,
जो जख्म सीनें में दबाकर रखते हैं
जिन्दादिल हैं जमाने में सिर्फ शख्स वो ही,
दर्द को सहके जो जीने का हुनर रखते हैं ।
जरूरी है नहीं फक़त खुशी ही मिले,
हम अपने घर के एक घरौंदे में,
फूल हर रंगो बू के रखते हैं ।
अनुराग दीक्षित