“जख्म को हमारे न यूँ हवा दीजिए “
“जख्म को हमारे न यूँ हवा दीजिए ”
जख्म को हमारे न यूँ हवा दीजिए।
टूट जायेंगे हम न एेसी खता कीजिए।
मोहब्बत की है हमने कोई खता नहीं की।
हमें हमारी मोहब्बत का कुछ तो सिला दीजिए।
मिली है जिंदगी बस चार दिनों के लिए।
कमशकम चार दिन तो जिंदगी का मजा लीजिए।
खामोश है कुछ मुफलिस लोग यहाँ पर।
उनकी जुबां को कुछ तो सदा दीजिए।
लाख बेवफाई की होगी औरो ने यहाँ पर।
औरो को छोड़ आप तो वफा कीजिए।
दिया है जीवन जिसने तुम्हें इस जहाँ में।
जरा उस शख्स का शुक्रिया तो अदा कीजिए।
अपनों के लिए तो सब जीते हैं यहाँ पर।
कभी दूसरों के लिए भी तो जिया कीजिए।
दिख रही हैं बाहर बहुत गंदगी फैली हैं।
अपनी भीतरी गंदगी को भी तो सफा कीजिए।
कहते हैं दुआवों में खूब असर होता हैं।
कभी अपनों से इतर दुजो के लिए भी तो दुआ कीजिए।
कहीं करो न करो कोई बात नहीं राम।
मगर देश के प्रति तो वफा किया कीजिए।
रामप्रसाद लिल्हारे
“मीना “