जख्मों को छेड़ते हैं
जख्मों को छेड़ते हैं वो मेरा हाल पूँछकर
पूँछते हैं कैसे हो यूँ तन्हा छोड़कर
हमसे ये अखलाक उनका अच्छा है या बुरा
उनको तो मजा आता है टूटा दिल चूर-चूर कर
गर थिरकते हैं सरे महफिल गैरों के साथ वो
गुनगुना लेते हैं हम भी दर्द की उफान पर
न समझो फिराक-ए-गम मे डूबे हैं हर घड़ी
मुस्कुरा लेते हैं अक्सर कसमों को याद कर
M.Tiwari”Ayen”