#जंबूद्वीपे शीश पे आसन
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★ कल, दिन शनिवार शुक्ल चतुर्थी मार्गशीर्ष विक्रमी संवत् २०८०, हमारे यहाँ #भगवतीजागरण था। वहीं बैठे-बैठे मैंने माँ जगदंबा के लिए कुछ पंक्तियां लिखीं।
आप भी पढ़ें. . .और, आशीष दें।
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★ #जंबूद्वीपे शीश पे आसन ★
जगजननी की पीठ इक्यावन
जंबूद्वीपे शीश पे आसन
शीश पे आसन दमक रहा है
सुखकारक और अति मनभावन
जंबूद्वीपे शीश पे आसन . . .
पांव में मात के छन-छन झांजर
घुंघरू की धुन सुन मुदित मनगागर
मुदित मनगागर मेरी छलक रही है
जेठआषाढ़ हुआ है सावन
जंबूद्वीपे शीश पे आसन . . .
मय्या के हाथों मेंहदी रची है
आशीष मय्या की हिरदे बसी है
हिरदे बसी है इक छब प्यारीसी
ममतामूरत गंगापावन
जंबूद्वीपे शीश पे आसन . . .
मय्या के अंग चोला लाल है साजे
माथे कुमकुम बिंदिया विराजे
बिंदिया विराजे जैसे सूरज उगा है
भगवाभगवा कुल जगआनन
जंबूद्वीपे शीश पे आसन . . .
जगतमाता की शेर सवारी
कर्ता जग की पालनहारी
पालनहारी माता जीवनधन है
पुण्यसलिला हरिहर कानन
जंबूद्वीपे शीश पे आसन . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा, यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०१७३१२