जंजाल
जीता मानव
भ्रम जंजाल में
नहीं सोचता
परमार्थ का
स्वार्थ है बस
अपना अपना
लूटो खसोटो का
है ज़माना
न है नारी
सम्मान
न है बुजुर्गों
का मान
महल अपना
अटारी अपनी
औलाद अपनी
धन संपत्ति अपनी
है बस यही
सपनों की दुनियां
इन्सान नहीं
यह है
हैवानों की दुनियां
है नहीं
ईमान धर्म
नहीं चाहते
करना कर्म
सपनों की दुनियां
में जीते है
हवाई किले
बनाते है
जियो यथार्थ
की दुनियां में
ईमानदार बनो
कर्मठ बनो
संजोये मेहनत से
अपनी दुनियां
करें सार्थक
जीवन अपना
होगी तभी
सतरंगी सपनों
की दुनियां अपनी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल