जंग अहम की
जंग कोई भी हमेशा बेकार है
इसमें तबाही बेहद अपार है ,
धन – तन ख़ाक़ हो जाते हैं
मन जल कर राख़ हो जाते हैं ,
अंहकार इतना बड़ा नहीं होता है
मानवता के आगे खड़ा नहीं होता है ,
मानव चित्कार से कान फट जाते हैं
फिर भी हम ज़िन्दा रह जाते हैं ,
जंग की आग हर जगह धधक रही है
घरों में देश में संसार में भभक रही है ,
क्यों इसमें ज़िद का तेल डालना है
और जीवनभर का दर्द पालना है ,
सारी शिक्षा सारा ज्ञान सब बेकार है
जब तक सर पर जंग की तलवार है ,
इस जंग के माहौल में शांतिदूत बनना है
सही मायने में ख़ुद को साबित करना है ,
आओ सारा अहम ताक पर रखते हैं
शांति का एक कदम अग्रसर करते हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )