जंगल, जल और ज़मीन
ज़ख्म फिर से हरे हुए
ख़्वाब देखकर मरे हुए…
(१)
इतना दर्द रखेंगे कहां
दिल हमारे भरे हुए…
(२)
हाकिम हमें क्या समझेंगे
दिमाग़ लेकर सड़े हुए…
(३)
देश को कहां ले जाएंगे
अवाम ये डरे हुए…
(४)
आख़िर हमारे रहनुमा
पीकर कहां पड़े हुए…
(५)
समाज के हालात पर
हम शर्म से गड़े हुए…
(६)
पहल यहां करेगा कौन
ज़िद्द पर सभी अड़े हुए…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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