जंगल की आग
बीहड़ जंगल में ,
दहकते अंगारे
पत्तों को तपा –
उड़ा देते हैं ।
टहनियों को –
जलाकर झुलसा देते हैं।
पेड़ों पर क्या गुजरती है?
नहीं जानता कोई ।
हां,
धुंआ उठता देख
अंगुली उठा देता है
हर कोई ।।
वह जंगल की आग
भड़कती है जब
समेटे कहां
सिमटती है कब ?
धुएं की गंध
फैल जाती है
चहूं ओर।
हा – हाकार मच जाता
सब ओर ।
पर
कौन जलता है
कौन बुझता है।
यहां किसकी,
किस किसको ?
रहती खबर।
जहां अपनी ही
लगाई बुझाई नहीं जाती
पराई तो किसको
रहती है खबर।
बस –
अधजली , स्याह धरती
जंगल की कहानी
कहने को रहती, आतुर
यही है जंगल की आग.
—————–*******——————–