जंंगल में भी आरक्षण की हवा
शहरों की आरक्षण की हवा, जंगल में भी पहुँच गयी। जंगली जीवों में भी कोतूहल जागा। वे अपने-अपने तरीके से अफवाह फैलाने लगे। बात वनराज तक पहुँची। उन्होंने आम सभा बुलाई। बाकी जानवरों का नेता बने गीदड़ ने आरक्षण की बात सिंह के समक्ष रखी।
सिंह ने कहा- ‘क्या होता है यह आरक्षण?’
गीदड़ ने चतुराई से कहा- ‘जो अपने आपको असुरक्षित महसूस करे उसकी विशेष रक्षा होनी चाहिए।’
‘मेरे रहते कौन असुरक्षित महसूस कर रहा है, जंगल में?’ सिंह दहाड़ा। उसने पूछा- ‘बतायें कौन हैं, जिसके साथ न्याय नहीं हो रहा?’
गीदड़ ने कहा- ‘यह प्रश्न नहीं है, महाबली, सभी प्राणी चाहते हैं कि वनतंत्र में उन्हें भी राज करने का मौका मिले?’
वनराज भड़के- ‘यानि बगावत। यानि, मेरे अधीन रहना कुछ प्राणियों को अच्छा नहीं लग रहा है, क्या मैं यह समझूँ?’
गीदड़ ने बात बदलते हुए कहा- ‘व्याघ्रवर, आपको जानकारी दूँ, मेरे ही वंश के कितने ही लोग जंगल से पलायन कर शहर की ओर चले गये। हाथी, भालू, चूहे, कुत्ते, घोड़े, हिरण, खरगोश, अनेकों सुन्दर पक्षी आदि भी शहरों में विचरण करने लगे हैं। अब शहर के लोकतंत्र की भाँति वन में भी वनतंत्र में परिवर्तन की इच्छा प्रबल होती दिखाई दे रही है।’
‘कैसा परिवर्तन?’ फिर दहाड़ेे वनराज।
‘लोगों को अपने अपने इलाके में नेतृत्व की स्वतंत्रता। कुछ लोग दलित हैं, उनका उत्थान हो, जैसे सेही, हिप्पोपोटोमस, सूअर, चूहे, ये सब अपने आपको हीन, असहाय, महसूस करते हैं।‘ गीदड़ ने चाल फैंकी।
सभा में सभी अपनी-अपनी बातें चिल्लाने लगे। अंततः चुनाव हुए। सभी ने अपने अपने प्रतिनिधि चुनाव में खड़े किये। जंगल में युगों से चला आ रहा वनराज का राज समाप्त हो गया।
वनराज जंगल से पलायन कर अपने परिवार सहित जंगल से बाहर आए। बाहर उन्हें देख कर लोग भयभीत हुए, पर उन्हें आसरा इन लोगों से ही मिला।
उन्हें सर्कस में काम मिल गया। अभयारण्य और चिड़ियाघर में पर्यटकों का वे मनोरंजन करने लगे। समय पर भोजन और समय पर चहलक़़दमी। जहाँ वन-वन घूमने की, हमेशा चैकन्ना रहने की परिस्थिति से मुक्ति मिली, वहीं चुस्ती-फुर्ती के स्थान पर आलस्य और अनिच्छा से शरीर धीरे-धीरे बलहीन होता गया। वनराज को जंगल के अपने आधिपत्य के दिन याद आने लगे। एक दिन सर्कस में पिंजरे में बन्द सिंह से, पास के ही पिंजरे में बन्द भालू ने पूछा- ‘वनराज, आपकी इस दशा का जिम्मेदार कौन है?’
‘समय इसका जिम्मेदार है।’ वनराज ने जवाब दिया। वह बोला- ‘शायद हम जंगल को कभी हमारे जंगली प्राणियों की सुख सुविधा का ध्यान रखते हुए, उनके अनुकूल नहीं बना सके। हमारे यहाँ शक्ति और सामर्थ्य के बल पर ही राज होता रहा। प्राणियों को बहुत स्वतंत्रता देने से भी यह स्थिति आई है। दलित को कभी उठने के अवसर प्रदान नहीं किये गये, शायद इसलिए।’
‘शार्दूल, जानते हो आपके जंगल से पलायन करने के बाद जंगल की क्या दशा हो रही है? मानव ने जंगल काटने शुरु कर दिये हैं। शेष जंगली प्राणी भी शिकार के डर से पलायन करने लगे हैं या शिकार होने लगे हैं। जंगल अब मैदान बन गये हैं। जंगल सिर्फ पहाड़ों तक ही सीमित रह गये हैं। अभयारण्य बनने से दूर तक विचरण करने की आज़ा़दी खत्म हो गयी है। मनुष्य ने जंगलों को भी बाँध दिया है।’ भालू ने कहा।
‘ऋक्षराज, तुम यहाँ कैसे?’ सिंह ने पूछा।
‘पशुश्रेष्ठ, ‘मैं भी जंगल की अराजकता और अपने शिकार के भय से यहाँ शरण लिये हुए हूँ।’ भालू ने जवाब दिया।
‘जंगल में आजकल किस का राज चल रहा है?’ सिंह ने पूछा।
‘चूहों और गीदड़ों के गठबंधन वाली सरकार राज कर रही है।’ भालू ने जवाब दिया।
‘इससे तो अच्छा है, हम यहाँ सुरक्षित हैं। गीदड़ ने सही कहा था, जो अपने आपको असुरक्षित महसूस करे, उसकी विशेष रक्षा होनी चाहिए।’ सिंह ने कहा।
‘सही कह रहे हैं, केसरी, एक और अच्छे समाचार हैं। शीघ्र ही हमें अभयारण्य में स्थानांतरित किया जाने वाला है, क्योंकि शहर की सरकार में वन्यजीव संरक्षण विभाग मानता है कि सर्कसों में जंगली प्राणियों के साथ हिंसात्मक रुख अपनाया जाता है। सही और पर्याप्त भोजन, खुली हवा का यहाँ अभाव है, जो हमारी मूलभूत आवश्यकता है। दिनों दिन शिकार के कारण हमारी प्रजाति लुप्त न हो जाये, हमारी विशेष सुरक्षा की आवश्यकता है। इस दृष्टि से सरकार हमें अभयारण्य भेजने की व्यवस्था कर रही है।’
‘यानि, यथार्थ में तो हम आरक्षण के हकदार हो गये हैं। केसरी और भालू हँसने लगे।
तभी रिंग मास्टर को उन्होंने अपने पास आते देखा, वे अपने कार्यक्रम के लिए तैयार होने लग गये।
भालू की बातों से अब केसरी को अपना भविष्य सुरक्षित लग रहा था। उसे भविष्य में फिर वनराज बनने के स्वप्न दिखाई देने लग गये।