छोड़ रहा हु ।
मैं भी अब पुराना हो रहा हु
इस शहर के लिए
यहा के गलियों के लिए
मेरे कमरे में लगे खिड़कियों के लिए
और सिर्फ़ नया हु तो वो
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
क्योंकि प्रेम पुराना नही होता
प्रेम हमेशा सच्चा रहता है ।
मैं सबसे छूट जाऊंगा एक दिन
इन दोस्तों से इन गलियों से
इन रिश्तों से इन अहसासों से
सब कुछ छूटता चला जायेगा
और यादों को हम अपने साथ
फिर किसी शहर में बस जाएंगे
वो प्यार वो अपनापन
वो हँसी वो रातें
सारी की सारी यही उदास रह जायेगी
लेकिन जब यहाँ से निकलूंगा
मुझें ये गालियां ये शहरें
ये दोस्त ये सबकी निगाहें
मुझें रोकने की कोशिश में लगेगी
लेकिन मैं सबको अलविदा कह
इक दिन शहर छोड़ जाऊंगा
और बचेगी तो सिर्फ़ और सिर्फ़
हमारी यादें ।
उन वादों के सहारे हर रोज़
ये अपनापन और ये चेहरा
याद करूँगा ।
– हसीब अनवर