छोड़ अलस मन चंचल..!
छोड़ अलस मन चंचल, चल उठजा रे..!
घन, घन-घन घन-घन बरसेगा,
मरुथल भी सोना उगलेगा,
हर गली मुहल्ले चौबारे,
घर आंगन फिर से महकेगा,
बस धीर धरो गम्भीर बनो,
फल निश्चित श्रम का निकलेगा,
कलह क्लेश क्षण भंगुर, मत घबरा रे…!
छोड़ अलस मन चंचल, चल उठजा रे..!
छल, दम्भ, द्वेष, पाखण्ड, क्रोध,
तज अवगुण, चल… हो मुक्तिबोध,
यह दृष्टि लक्ष्य से डिगे नहीं,
उर अन्तस् को कर ले सुबोध,
चल उठ, चल बढ़, चल भेद लक्ष्य,
चाहे जितना भी हो विरोध,
खिले पुष्प काँटों में, सब महका रे..!
छोड़ अलस मन चंचल, चल उठजा रे..!
दस बात सुनो तब एक कहो,
सब प्रेम भाव में साथ बहो,
मन, वचन, कर्म से स्वच्छ किन्तु,
मत व्यर्थ कष्ट अन्याय सहो,
बन नीति मार्ग के पथगामी,
जीवन के रण में अडिग रहो,
राजहंस मानस के, अब उड़जा रे…!
छोड़ अलस मन चंचल, चल उठजा रे..!
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊️