छोड़ने को बीड़ी हमने कही थी ……
पता नहीं कभी कभी लोग मेरी बात को इतनी गम्भीरता से क्यूँ ले लेते हैं । यह बात उन दिनों की है जब में कानपुर में sr ship कर रहा था , उस दिन सुबह मेडिकल वार्ड में राउंड पर एक व्रद्ध जो सांस का गम्भीर रोगी था ( copd chr. Corpulmonale , blue blotted ) जो अपने बिस्तर पर उल्टा उल्टा पड़ा था ( jenu – pectus in pron position ) तकिये पर मुहं उलट कर अधलेटा था ,पहले तो मै यह देख कर हैरान रह गया कि उसके दोनों कानों के पास से धुआं कैसे निकल रहा है , फिर समझ मे आया वो तकिये में मुँह छुपा कर बीड़ी पी रहा था ! मुझे इलाज के दृष्टिकोण से उसकी यह बात बहुत अजीब लगी , कहां तो वो ऑक्सीजन आदि के स्तर के इलाज पर था और मुझे लगा ऐसी हालत में धूम्रपान करने पर उसकी मृत्यु होसकती है ।
अतः मैने नकली नाराज़गी दिखाते हुए अपने कनिष्क चिकित्सक ( house ) को बोला
‘ मैं इसे नहीं देखूं गा ,इसे दवा मत दो ,कहां है इसकी बीड़ियां ‘ कहते हुए मैंने उसकी सदरी की जेब से बीड़ी का बण्डल निकाल लिया । अब तक वो ज़ोर लगा कर बैठ गया था और अपनी सूजी फूली नीली आँखों ( blue bloatted cyanosed eyes ) की कातर दृष्टि से मेरे हाथ जोड़ कर विनती करने लगा की अब वो बीड़ी नहीं पिये गा । मैं अपने साथी को उसका समुचित इलाज जारी रखने का निर्देश देते हुए आगे बढ़ गया ।
मेडिकल कालेज की दैनिक व्यस्तताओं के बीतने के बाद शाम को वार्ड में राउंड पर घुसते ही मैं उसका फोल्डिंग पर्दे से ढका बिस्तर देख कर चौंक गया । मैं समझ गया था कि वो अब इस दुनियां में नहीं है । मैं उसके बिस्तर के पास गया , मेरे पास कुछ भी कहने के लिए शब्द नहीं थे , और न ही वो सुनने के लिए अब वहां था I मन मे किसी बड़े शायर के बकौल ध्वनित हुआ –
छोड़ने को बीड़ी हमने कही थी तुम जहाँ छोड़ गए ।
उससे छीना हुआ बीड़ी का बण्डल अभी भी मेरे बैग में पड़ा था । मैंने ज़िप खोल कर वो बीड़ी का बण्डल निकाल कर पास ही एक खिड़की की चौखट पर रख दिया । मन किया कि अगर ये एक बार मेरे सामने एक सांस भी ले लेता तो मैं खुद ही पूरा बीड़ी का बण्डल जला कर उसके मुंह मे दे देता ।
वो दिन है और आज का दिन मैं कभी इस हद दर्जे के नशेड़ी , गंजेड़ी , बेवड़े को उसकी लत छुड़वाने के लिए इतनी सख्ती नही बरतता । ए लत ( addiction ) तेरी आखरी नज़र को सलाम ।.