छोड़ आया हूँ मैं अपना घर, अपनी गलियां, वो अपना शहर,
छोड़ आया हूँ मैं अपना घर, अपनी गलियां, वो अपना शहर,
रास्ता है नया, नई मंज़िल और सफर,
आज वक़्त खुद के नाम कर रहा हूँ,
देखो जरा किस दौर से गुज़र रहा हूँ,
ज़ब भी लोगों के सहारे मैं चलता हूँ,
अंदर ही अंदर से बहुत डरता हूँ,
अब जों निकला हूँ खुद के दम पर रास्ता बनाने,
उन लोगों से दूर ही रहता हूँ जों मुझे लगते है समझाने
कितने ही जहां मैं छोड़ आया हूँ,
कितने ही अरमाँ मैं तोड़ आया हूँ,
कितने ही कारवां मैं मोड़ आया हूँ,
अब जों छोड़ आया हूँ ज़िन्दगी की ख़्वाहिशे,
तो बढ़ चला हूँ देखकर खुद की जरूरतें,
अब ना सोचता हूँ उतना ज्यादा,
ना याद करता हूँ बीतें लम्हे ज्यादा,
बातें सीधी- साफ कहने की आदत-सी हो गयी है,
ना रूठता हूँ ज्यादा, ना मनाता हूँ बहुत,
जों खुश रहते है मुझसे उन्हें दायरे में रखता हूँ,
बाकि सबको उनके कायदे में रखता हूँ,
मुझको सच सुनना पसंद, वही सुनता हूँ अब..
ना ही उम्मीदों के बोझ से डोलता हूँ अब,
कोई दोस्त – यार ज्यादा अब करीब ना रहे,
यारी तो दिल से है पर अब वो याराना नहीं रहा,
खुद के फैसलों से मैं करता हूँ प्यार,
जिस से फांसले हो जाते है कुछ अपनों से यार,
मैं तो खुद ही समझ रहा हूँ खुद को अब भी,
जाने कितनी खूबीयाँ और खामियाँ हैँ मेरे अंदर…!!
❤️ Love Ravi ❤️