छोड़कर मन की कलुषता
छोड़कर मन की कलुषता आओ इक नवगीत लिख लें।
श्वेत अन्त: के पटल पर आओ मधुरिम प्रीत लिख लें।।
हर्ष हो उल्लास हो।
बात में नित हास हो।
तोड़कर जग का गहन-तम आओ कोई रीति लिख लें।
छोड़कर मन की कलुषता आओ इक नवगीत लिख लें।।
राह के कांटे हटाकर।
मार्ग में मंजरी बिछाकर।।
हार को भी अब हराकर इक नयी सी जीत लिख लें।
छोड़ कर मन की कलुषता आओ हम नवगीत लिख लें।।
कोई राजा रंक हो न।
भूख से अब मौत हो न।।
हों सभी जग में सुखी अब कोई ऐसी नीति लिख लें।
छोड़ कर मन की कलुषता आओ हम नवगीत लिख लें।।
अटल मुरादाबादी