*छोड़कर जब माँ को जातीं, बेटियाँ ससुराल में ( हिंदी गजल/गीति
छोड़कर जब माँ को जातीं, बेटियाँ ससुराल में ( हिंदी गजल/गीतिका )
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(1)
छोड़कर जब माँ को जातीं ,बेटियाँ ससुराल में
सोचती रहती हैं माएँ , बेटियाँ किस हाल में
(2)
दामाद जी अच्छे मिले तो ,धन्य किस्मत मानिए
वरना फँसी चिड़िएँ अनेक ,बहेलिए के जाल में
(3)
सब भले लगते हैं रिश्ते ,मँगनियों के दौर में
सज्जन मिले शैतान तो कुछ ,साधुओं की खाल में
(4)
पारखी होते हैं कुछ ही ,जो गुणों को देखते
वरना नजर रहती है सिर्फ, दहेज ही के माल में
( 5 )
ससुराल जाने किस तरह के ,सास-पतियों की मिले
अटका हुआ है जिंदगी का ,मोड़ एक सवाल में
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रचयिता : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 54 51