( हास्य कविता )
( Copyrighted )
छोट्या रो छोरो छोटलो ©
( हास्य कविता )
???????
_____________________
छोट्या रो, छोरो छोटलो
रोज खाव, घी भर-भर रोटलो
दिन-दिन होरियो, घणो मोटलो ||
झटपट पेर स, यो मेखलो
अर ओढ़, रंगीलो टोपलो
रह त्यार, कदे भी देखल्यो
जीमण कोई ना, छोड यो
घर को होव,क पड़ोस को ||
बुआ ल्याई एक दिन, ढोकलो
पूरा चार डब्बा मां हो, मोकलो
बेशर्मो, सारो चेपगो एकलो ||
एक दिन मां, उचायों बिन पोटलो
धम्म सूं नीच गेर, बणगो रोतलो
कहयो, इसूं उपड़ स मेरो चोटलो
तो मां रुंस क उठायो, घोटलो
अर दियो बिक, एक सोटलो ||
पहली पड़ी तो, ऐंठ गो
दूजी पड़ी तो, नीच बैठ गो
तीजी पड़ी तो, सीधो लेट गो
चौथी पड़बा लागी तो, भाज गो ||
माँ बोली छोरा तू है, बड़ो खोटलो
नखरा खूब कर तु , मैं दिखलियों
अबकी खाइये, मैं खुवाऊं
घी भर-भर के तन, रोटलो ||??
_____________________
स्वरचित एवं
मौलिक कविता
लेखिका :-
©✍️सुजाता कुमारी सैनी “मिटाँवा”
लेखन की तिथि :- 8 मई 2021