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14 Jul 2021 · 1 min read

( हास्य कविता )

( Copyrighted )

छोट्या रो छोरो छोटलो ©
( हास्य कविता )
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_____________________

छोट्या रो, छोरो छोटलो
रोज खाव, घी भर-भर रोटलो
दिन-दिन होरियो, घणो मोटलो ||

झटपट पेर स, यो मेखलो
अर ओढ़, रंगीलो टोपलो
रह त्यार, कदे भी देखल्यो
जीमण कोई ना, छोड यो
घर को होव,क पड़ोस को ||

बुआ ल्याई एक दिन, ढोकलो
पूरा चार डब्बा मां हो, मोकलो
बेशर्मो, सारो चेपगो एकलो ||

एक दिन मां, उचायों बिन पोटलो
धम्म सूं नीच गेर, बणगो रोतलो
कहयो, इसूं उपड़ स मेरो चोटलो
तो मां रुंस क उठायो, घोटलो
अर दियो बिक, एक सोटलो ||

पहली पड़ी तो, ऐंठ गो
दूजी पड़ी तो, नीच बैठ गो
तीजी पड़ी तो, सीधो लेट गो
चौथी पड़बा लागी तो, भाज गो ||

माँ बोली छोरा तू है, बड़ो खोटलो
नखरा खूब कर तु , मैं दिखलियों
अबकी खाइये, मैं खुवाऊं
घी भर-भर के तन, रोटलो ||??

_____________________

स्वरचित एवं
मौलिक कविता

लेखिका :-
©✍️सुजाता कुमारी सैनी “मिटाँवा”
लेखन की तिथि :- 8 मई 2021

Language: Hindi
268 Views

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