छोटी सी बात
छोटी सी बात
मोनिका और आशीष बचपन से एक साथ थे, एक ही स्कूल, फिर एक कालेज, यूनिवर्सिटी, और अब एक ही जगह उनको नौकरी भी मिल गई थी। उन दोनों का एक-दूसरे से गहरा परिचय था , और उनकी मित्रता के कारण दोनों के परिवार भी निकट आ गए थे ।
आशीष सुंदर प्रतिभाशाली युवक था। मोनिका के माँ पापा का विचार था कि एक दिन मोनिका स्वयं आकर कहेंगी कि वह आशीष से विवाह करना चाहती है, परन्तु उनके आश्चर्य की सीमा न रही जब एक दिन मोनिका अपने एक पुरूष मित्र अंकुर को घर ले आई, ताकि वह अपने माँ पापा से उससे विवाह की अनुमति ले सके ।
उसके चले जाने के बाद माँ ने कहा, “ यह कब हुआ, हम तो सोचते थे तुम आशीष को चाहती हो ।”
मोनिका हंस दी, “ उसको चाहना इतना आसान नहीं मां । “
“ यानि ? “
“ कभी उसे बहस करते सुना है? “
“ नहीं । “
“ तभी ।”
“ तभी क्या ?”
“ उसे अपनी आवाज़ के अलावा कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती, उसे हर जगह अपना ज्ञान दिखाना होता है ।”
“ ज्ञान है तो दिखेगा ही ।”
“ दिखने और दिखाने में अंतर है, मुझे लगता है उसके अंदर कहीं हीन भावना है, उसे दबाने के लिए वह बढ़ चढ़कर बोलता है ।”
“ सिर्फ़ इसलिए उसे छोड़ देगी ? “
“ छोड़ कहाँ रही हूँ, मैंने उससे कभी कोई वादा नहीं किया ।”
“ तो क्या अंकुर में कोई कमी नहीं? “
“ है न , पर हीन भावना नहीं, वह अपने प्रति अधिक आश्वस्त है, इसलिए मुझे सहानुभूति से सुन सकता है, और अधिक स्पष्टता से सोच कर अगला कदम ले सकता है, प्यारी मम्मी , वह कन्फ़्यूजड नहीं है।”
माँ को यह सारी बातें बेचैन कर रही थी, इतना होनहार बच्चा कन्फ़्यूजड कैसे हो सकता है !!!
माँ ने रात को पापा से कहा, “ मैंने तो सदा से आशीष को ही अपना दामाद माना है। “
पापा ने कहा ,” सोचा तो मैंने भी यही था, पर अब उसको कोई और पसंद है तो हमें बीच में नहीं आना चाहिए, नहीं तो हम अपनी ही परवरिश का अपमान करेंगे ।”
माँ ने बात सुन ली और तर्क के स्तर पर उसे मान भी लिया , परन्तु उस रात वह सो नहीं पाईं , सुबह उठते ही उन्होंने आशीष के माँ पापा को रात के भोजन का न्यौता दे डाला । आज वह उन्हें नई दृष्टि से देखना चाहती थी ।
माँ ने पहली बार लक्षित किया कि उन दोनों में माँ अधिक शक्तिशाली ढंग से बोलती हैं , और पिता जैसे अपनी बात कहने के लिए अवसर की प्रतीक्षा करते रहते हैं, और यदि मिल जाये, तो फिर उनका बोलना बहुत देर तक जारी रहता है।
उनके जाने के बाद माँ ने सोचा, इस तरह का व्यवहार इतनी साधारण सी बात है कि हम कभी सोचते ही नहीं कि यह बच्चों का मन तैयार कर रहा है ।
दो दिन बाद उन्होंने मोनिका से कहा, “ इतना अच्छा लड़का है अशीष , समय के साथ वह इस बात को खुद समझ जायेगा ।”
“ ज़रूर समझ जायेगा मां , और मुझे वह अच्छा भी लगता है, परन्तु मैं विवाह उससे करूँगी , जिसके लिए हमेशा बोलना और उलझना ज़रूरी न हो ।”
“ परंतु मोनिका, हम सब में ऐसी कई कमियाँ होंगी जिससे हम जीवन भर अनजान रहते हैं, और कभी कभी किसी के थोड़े से मार्गदर्शन से खुद को सँभाल भी लेते हैं । “ मोनिका चुप रही तो माँ ने फिर कहा , “ आज तुम जैसी हो जीवन भर वैसी नहीं रहोगी , और न तुम्हारा साथी वैसा रहेगा, तुम दोनों बार बार एक-दूसरे को नई दृष्टि से देखोगे ।”
“ माँ मैं आपकी बात समझ रही हूँ , पर आकर्षण वहीं होता है, जहां आत्म विश्वास एक सा हो । मैं आशीष को आपसे ज़्यादा जानती हूँ । हमारा आत्मविश्वास मेल नहीं खाता, इसलिए हमारे कदम एक साथ नहीं चल सकते ।”
मां का मन बहुत उदास था, पर वह जानती थी कि रिझाने का काम तो आशीष को खुद करना पड़ेगा, थक हार कर उन्हें अंकुर के लिए हाँ कहनी पड़ी , शादी के समय वह हंसते हुए आशीष को दूर से देखती रही ।
—-शशि महाजन