छोटी-सी दुनिया
कितनी छोटी है तुम्हारी दुनिया
रोज़ सुबह देखता हूं तुम्हें
चहकते हुए
आसमां की ओर बढ़ते हुए
रोज़ तुम्हें सोचता हूं
कि छूं लूं एक बार
वैसे ही
जब तुम उस टहनी पर बैठती हो
जिस पेड़ की छावं से
मैं तुम्हें देखता हूं
जानती हो जब तुम छोटी थी
उड़ नहीं सकती थी
मैंने स्नेहवश तुम्हें छूआ था
जैसे किसी बालक को
गोद में लेते हैं पलभर
सबसे न्यारी हो
तभी तुम्हारी छोटी दुनिया में
तुम सबसे प्यारी हो..
मनोज शर्मा