कहानी : वह गांव की पढ़ी लिखी लड़की
कहानी : वह गांव की पढ़ी लिखी लड़की
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वह गांव की रहने वाली थी। शादी अभी नहीं हुई थी। बातचीत में उसने कई बार कुछ अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया। मुझे लगा कि शायद यह पढ़ी लिखी है । मैंने पूछ लिया-” कितना पढ़ी हो ? “।
उसने कहा -“बी ए पार्ट वन कर लिया था। आगे पढ़ाई नहीं हो पाई “।
बी ए पार्ट वन गांव की दृष्टि से अच्छी पढ़ाई मानी जाती है। इसलिए मेरी उत्सुकता बढ़ी और मैंने पूछा कि तुमने केवल बी ए पार्ट वन करके ही पढ़ाई क्यों छोड़ दी? बी ए पूरा क्यों नहीं किया । वह बोली”- माहौल नहीं था”
मैंने कहा–” क्या बात ? माहौल में क्या बात है “।
वह बोली”- डिग्री कॉलेज गांव से दूर था। बस से जाना पड़ता था । बस भी कभी समय से मिलती थी ,,कभी नहीं मिलती थी। फिर क्या बताऊं ! बस में भी बैठ जाओ तो सारी सीटें भर जाती थीं, उसके बाद भी बस वाला देखता ही नहीं था । दनादन सवारियों को बिठाता रहता था। पूरी ठुँस जाती थी बस,, और उसके बाद हमारे लिए तो बच पाना भी मुश्किल हो जाता था “।
कहते हुए उसके गाल शर्म से लाल हो गए थे ।
मैंने कहा -“क्या यह समस्या सिर्फ तुम्हारे साथ आती थी ? और लड़कियों के साथ नहीं?”
वह बोली” मैं अकेले ही बीए करने के लिए जाती थी । बाकी लड़कियों ने बीए नहीं किया।”
सोच को स्पष्ट करने के लिए मैंने प्रश्न कर दिया -“क्या सचमुच यह लड़कों के द्वारा छेड़ने का कारण था ?”
उसने सिर झुका कर कहा -“हां “।
मैंने कहा कि “क्या इंटर में यह समस्या नहीं आई ? ।
उसके मुंह से तुरंत निकला -“यह तो भगवान का शुक्र था कि मेरे हाई स्कूल पास करते ही मेरे गांव में जो स्कूल था वह हाई स्कूल से बढ़कर इंटर कॉलेज हो गया और इसलिए मुझे कहीं दूर नहीं जाना पड़ा और उसी गांव में उसी स्कूल में जहां से मैंने हाईस्कूल किया था वहीं मैं इंटर करती रही।”
मैंने पूछा “इसका मतलब है कि अगर गांव में हाई स्कूल बढ़कर इंटर कॉलेज नहीं हो जाता तो तुम्हारी पढ़ाई हाई स्कूल पर रुक जाती ? ”
वह बोली” हां ! फिर मुझे कौन पढ़ाता ? वैसे भी उस समय मेरी उम्र छोटी थी ।बी ए के लिए तो फिर भी सबने भेज दिया”।
मैंने दोबारा उस से प्रश्न किया कि क्या गांव में अभी भी बेटियों को पढ़ाते हैं या उपेक्षा का दृष्टिकोण है । वह बोली “वैसे तो बहुत माहौल बदला है। अब लोग बेटियों को पढ़ा रहे हैं ”
फिर सकुचाते हुए लेकिन क्षणभर में ही सकुचाहट को भूल कर फिर उसने कहा– “सच तो यह है कि लड़कियों को इसलिए पढ़ाया जा रहा है कि उनकी शादी हो जाए।”
मैंने चकराकर पूछा –” शादी से पढ़ाई का क्या मतलब ? ”
वह बोली-” बाबूजी जो लड़कियां पढ़ी हुई नहीं होती हैं ,उनसे कोई शादी नहीं करता । ”
मैंने कहा -“कितनी पढ़ी हुई होनी चाहिए ?”
” हाई स्कूल”- वह बोली। ” हाई स्कूल तो कम से कम है । वरना हाई स्कूल को कौन पूछ रहा है !
मैं दिल में सोचने लगा कि चलो शादी के कारण ही सही लेकिन लोग अपनी बेटियों को पढ़ाने के लिए मजबूर तो हो रहे हैं। बातों बातों में एक और बात उसके सामने आई। मैंने कहा -“यह बताओ कि जो बिना पढ़ी हुई लड़कियां हैं और पढ़ी हुई लड़कियां बी ए पास हैं –उनके रहन-सहन में और कामकाज में कोई फर्क बैठता है ?”
वह बोली “फर्क तो कुछ भी नहीं है ।जैसे काम बेपढ़ी – लिखी लड़कियों को करने पड़ते हैं, वैसे ही हम पढ़ी लिखी लड़कियों को भी शादी के बाद वही सारे काम करने होते हैं।”
लेकिन फिर उसने जोर देकर कहा” अगर हम पढ़े लिखे हैं तो हम अपने बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ा सकते हैं और सोच समझ कर उनके बारे में फैसले ले सकते हैं “।
लेकिन फिर हंसती हुई कहने लगी -” मेरी एक रिश्ते की मौसी दूर गांव में रहती थीं। वहां पर डिग्री कॉलेज था । मैंने जब उनसे कहा कि मैं तुम्हारे यहां रहकर डिग्री कॉलेज में पढ़ाई कर लूं तो मुझसे बोलीं कि कर ले ! मुझे भी बहुत आराम हो जाएगा तू गोबर के उपले पाथ दिया कर । मैं तो सुनकर डर के मारे उसी दिन वहां से भाग आई ।मैंने कहा अगर मुझे पढ़ाई के साथ-साथ उपले ही पाथने होते तो फिर मैं पढ़ने के लिए डिग्री कॉलेज क्यों जाती ?”।
मुझे भी सुनकर हंसी आ गई।
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लेखक: रवि प्रकाश , रामपुर