“छोटा सा दिमाग”
आँखे जो देखे… मन उससे विपरीत ही करता,
क्या करे ऐ तो मन है…वो कहा एक जगा स्थिर हैं
दिल कहता है अरे रुकोना,बेठौना मेरे पास,
करते हैं कुछ अपने वाली बात,
फिर भी भागता दिनरात,
लम्बी लम्बी सफर पल में तय कर लेता,
छोटा सा दिमाग कितना बोज वहन करता,
फिर भी हवा से नाजुक…….!
और तेज उसकी रफ्तार…….!!
सोचता क्या… और करता क्या……!!!
ये तो जैसे आदत और खुमारी वाली बात।।।