‘छोटा सा गाँव’
गंगाजी के तट पर,
नगर से हटकर,
छोटा सा गाँव पुराना,
बड़ा मनोरम।
आँगन में शोभित हैं,
आम्र नीम तरुवर,
गेरू हाथ छाप द्वार,
शोभा अनुपम।
मनते तीज त्योहार,
अनुरूप रीत सभी,
वधु करती श्रृंगार,
लगे रति सम।
सांझ ढले गउ झुंड,
लौटते वनसे चर,
गल घुंघरू झनके,
सुर मधुरम।
रिमझिम रिमझिम,
गिरती सावन बूँदे,
झूले गाती गीत नार,
संग प्रियतम।
कूकती कोकिल बाग,
रंभाय गौ बछिया,
गूँजे ढोल पर थाप,
धन धम धम।
बाल सब मिलकर,
कर रहे कोलाहल,
खेलते आँख मिचौली,
मचाते ऊधम।
खेत की कच्ची मेढ़ पे,
करते सैर खेतों की,
फैली हरियाली आभा,
है सुंदरतम।
गोदाम्बरी नेगी