छूना है आसमाॅं
रिश्तों में अहमियत ऑंखों की नमी बताती है।
ज़िन्दगी में तन्हाई अपनों की कमी बताती है।
इंसाॅं तू चाहे कितना भी ऊॅंचा आसमाॅं छू ले,
तेरा वज़ूद, तेरी असलियत ये ज़मीं बताती है।
तू कितनी भी शेख़ी बघारने की कोशिश कर ले,
तेरी शख़्सियत तेरे मोहल्ले की गली बताती है।
मुश्किलों में कैसे मुस्कुरा सकते हैं, तू सीख ले,
काॅंटों में भी खिलना,गुलाब की कली बताती है।
झूठ, फरेब से दुनिया चलाता रहा, तू अब तक,
तेरी मायूसी,तेरे अन्दर की खलबली बताती है।
हमेशा ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिश क्यों रखता है,
तेरी मौत की तारीख़, ख़ुदा की हॅंसी बताती है।
अपनी ज़िन्दगी में तू राजा रहा था या फ़कीर,
क़ब्रिस्तान में तेरी राख की, जली बताती है।
संजीव सिंह ✍️©️®️
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)