*छूट_गया_कितना_कुछ_पीछे*
छूट_गया_कितना_कुछ_पीछे
————————————–
क्या लेकर चले थे -कभी
क्या लेकर आये थे -कभी
किसका अफसोस करें
उसका ,
जो कभी था ही नहीं हमारा
क्यों करें अफसोस उसका
जब तक हमारा था हमारे पास था
आज वह चला गया उसके पास
जिसका था ,
हाँ ,कितना कुछ छूट गया और
आगे क्या क्या छूटेगा
पता नहीं …,
राह में –चलते चलते ,
आज के समय की इस आँधी में
कितनों के अपनों का साथ रहेगा
वहीं कितने यादों के साथ रहेंगे
छुपा हुआ है वक़्त के गर्भ में
पता चलेगा आँधी के थमने के बाद
कि ….,
छूट गया कितना कुछ पीछे
इस अब तक के सफर में …||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली ,पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
05-02-2024