छूकर तुमको
छूकर तुमको
जानना चाहता हूं मैं
तुम्हारा वह जादू और
हुनर कि मिट्टी को तुम
सोने में कैसे बदलते हो
अपने बदन पर गिरती
धूप को तुम
एक सुनहरी गोटे की किनारी से लिपटे आंचल से
कैसे ढकते हो
आसमान के तन से
जमीन के मन से और
अपनी रूह से तुम
रिश्ते कैसे निभाते हो
उनके बीच एक सामंजस्य कैसे
बिठाते हो
कैसे हो जाते हो
चांदनी रात में
चांद के रथ पर सवार और
दूर कहीं
परियों के देश की तरफ
उड़ जाते हो
कैसे सुबह फिर से उतर आते हो
एक चांदी की ओस की बूंद से
और अपने ही लिबास को कहीं
ओढ़कर
उससे लिपटकर
उसमें कहीं छिपकर
उसके आगोश में ही कहीं समा
जाते हो
हर सुबह दिखते हो
एक सूरज की उगती
नई तस्वीर से तुम
रात को ठंडी जो पुरवाई चले तो
मेरे मन को छूकर
निकलते
मेरे कानों में अपनी
कौन सी पिछले जन्म की
कोई नई सी अनुभूति देती
एक दो बिछड़े दिलों को
मिलाती हुई
कोई प्रेम कहानी सुना जाते हो।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001