छुप कर अश्रु बहा लेता हूँ
जीवन के सुख दुख मे हर पल खुद को धीर बंधा लेता हूँ
देख न ले यह दुनियॉ सारी छुप कर अश्रु बहा लेता हूँ
गम के काले बादल छाये जब जब है मेरे ऑगन मे
यादो की खुशबू से तब तब घर ऑगन महका लेता हूँ
खुशी नहीं मिलती इक पल की मेरे अंतस मन को अब तो
ऑखो से बहते आँसू को मै तो मित्र बना लेता हूँ
दुनियॉ साथ निभाती तब तक जब तक घर मे धन धान्य भरा
अपने मन की पीड़ा मै तो खुद को रोज सुना लेता हूँ
छूट गये वो साथी सारे जिनको चाहत थी दौलत की
निर्धन की बस्ती मे जाकर सबको गले लगा लेता हूँ
रुष्ट हुआ जब सावन प्यारा पतझड़ ने है डेरा डाला
छटा बढ़ाने तब उपवन की मन के पुष्प खिला लेता हूँ
अभिमान न आ जाये मुझमे यह सोच बसाई है मन में
पा कर मै सम्मान जगत मे अपना शीश झुका लेता हूँ
विरह वेदना सुख दुख माया अंश सभी जीवन के होते
मृत्यु है केवल सत्य शाश्वत गीता ज्ञान सिखा लेता हूँ
घनघोर निशा , पथ पथरीला , निर्जन सी राहें जीवन की
जीवन सरल बनाने वाले गीत तुम्हारे गा लेता हूँ
जीवन की हर बाधा मुझसे दूर कहीं जाती सी लगती
चंदन सी तेरी खुशबू को जब थोड़ा मैं पा लेता हूँ
होगा यह उपकार तुम्हारा अगर शरद से मिलने आओ
थमती सॉसो की डोरी से तुमको पास बुला लेता हूँ
©
शरद कश्यप