छुट्टी
कितनी अच्छी लगती छुट्टी,
सबके मन की चाहत छुट्टी ,
जब जब होती ,खुशी ही लाती ,
पर बस कभी न मुझको मिलती,
ऐसी है ये अलहड़ छुट्टी ।
नानी ,नाना के धर जाते बच्चे,
नए कपड़े सिलवाते बच्चे,
महिनों पहले ईठलाते बच्चे,
सबकी नाक में दम हैं करते
फिर भी मामा के लाडले कहलाते।
मम्मी पापा हर छुट्टी में बुलाते,
बड़े बड़े सब प्लान बनाते,
पागल बन सब हंसते हंसाते ,
मायके के गुणगान थे करते ,
खत्म हो जाती मनाते मनाते ।
छुट्टी के दिन आए देखो,
बच्चों तुम कहाँ हो देखो ,
क्यूँ तुम कुछ न कहते देखो,
जिद भूले या नाना धर जाना,
गायब है बच्चों का इठलाना ।
छुट्टी की अब शान धटी है ,
सबको हरदम काम बहुत है,
वक्त नहीं है,खर्च बहुत है,
एसी गाड़ी की टिकट नहीं है
और नानी का शहर भी दूर है।
मन में हो ऐसी हो छुट्टी,
बच्चों के बचपन की छुट्टी,
आम ही खाऐं ऐसी छुट्टी,
समय बहुत हो बेफिक्र छुट्टी,
ऐसी चलो मनाएं छुट्टी ।