छीपा लेते अपना गुमान तो अच्छा होता।
ग़ज़ल
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तुम छीपा लेते अपना गुमान, तो अच्छा होता,
तुम काबू मे रख लेते जुबान, तो अच्छा होता।
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झुकी हुई ये आंख तुम्हारी यूं कभी न शर्माती,
गर कर लेते सभी का सम्मान,तो अच्छा होता
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शर्मसार कर दिया जहां मे सभी को तुमने यार
बचा लेते अगर बची हुई शान, तो अच्छा होता
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इक फैसले से तेरे,कितनी गई थी जाने राजन
किए पर अपने होते पशेमान, तो अच्छा होता
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गरीब का छीन निवाला दे रसूखदार को दिया
जरा सा उन्हे भी देते अनुदान,तो अच्छा होता
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मरने वाले देख ना पाऐ तेरा ये फ़रमान “जैदि”
काश! पहले तुम देते मुस्कान, तो अच्छा होता
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मायनें:-
पशेमान:- शर्मिंदा
शायर:- “जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”