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19 May 2020 · 1 min read

छा गई उदासी चेहरे पर

छा गई उदासी चेहरे पर
तो दिखती है नज़ारों में कहीं

मगर यार को मालूम न हो
मैं हूं जो इन दरारों में कहीं

कब से आफताब की उम्मीद लिए
कि अब चल दिए सितारों में कहीं

वो होगा बेशक कहीं दूर भी
काली दुनिया या तारों में कहीं

मुझ मुजरिम की दफा कितनी लगी
कहता है खुद इशारों में कहीं

ज़ी करता है खरीद लूं खुशियां
बेबस नज़रें बाजारों में कहीं

क्या हुआ कि रोज जला रहे ‘मनी’
एक दिया अंधियारों में कहीं

– शिवम राव मणि

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