छायी है बदरी घनी,बारिश है चहुँ ओर।
कुण्डलिया।
छायी बदरी है घनी,बारिश है चहुँओर।
घोर घटा घन बीच है , चपला चमके जोर।
चपला चमके जोर, चाँदनी चमके जैसे।
करके घन की ओट,शर्म से दमके वैसे।
कहें प्रेम कविराय,छटा सतरंगी आयी।
हरियाली के मध्य ,दिलों में मस्ती छायी।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम।
वरिष्ठ परामर्श दाता, प्रभारी रक्तकोष।
जिला चिकित्सालय, सीतापुर।
मौलिक रचना