” —————————————- छायी रहे बहार ” !!
श्वांस श्वांस में घुला जहर है , जीना है दुश्वार !
यहां प्रकृति का आँचल ही , करता है उपकार !!
है विकास की दौड़ हठीली ,धरती स्वांग भरे है !
संरक्षित वन उपवन दिखते , छायी रहे बहार !!
ऊंची ऊंची हैं इमारतें , कांक्रीट के जंगल !
मानवता बैठी प्रयासरत , करती रहे प्रहार !!
हरे भरे हैं गांव अभी बस , हरित क्रांति के दूत !
यहां प्रकृति पैर पसारे , पाती है मनुहार !!
हमें मिली हैं औषध सारी , और मिला है जीवन !
मां की ममता यहां मिली है , कुदरत से है प्यार !!
छाया में जीवन पल जाये , मिले हमें शीतलता !
अपने हाथों हमें सवाँरना , जो नियति के उपहार !!
एक एककर कर जोड़ें हम , सौगन्ध उठायें ऐसी !
प्रकृति को देंगें संरक्षण , नया रचें संसार !!
बृज व्यास