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4 Nov 2019 · 1 min read

छाया यहाँ तम का कहर

छाया यहाँ तम का कहर
उजियारे है की आस नहीं

आज बहुत गमगीन हूँ
खुशी का आभास नहीं

बहे आँखों से अश्रुधारा
मुस्कराहट का वास नहीं

यह दुनिया है बैगानों की
अपना कोई खास नहीं

फ़रेबी हैं लोग यहाँ पर
सच्चों की तालाश नहीं

अंजुमन में हैं लोग बहुत
दिलबर आस पास नहीं

कोहरा यहाँ निराशा का
आशाओं की शाम नहीं

मय तो हम पीते हैं बहुत
मयखाने में मय ही नहीं

नभ में बादल छाये बहुत
नजर आती बरसात नहीं

सागर तो बहुत व्यापक है
नाल में रखा पतवार नहीं

शाम तो रंगीन बहुत यहाँ
यहाँ साकी और जाम नहीं

बादल तो छंट गए हैं यहाँ
धूप का नामोनिशान नहीं

बगिया में खिले फूल बहुत
महकान का यहाँ वास नहीं

तारों भरी रात चमक रही
नजर आता यहाँ चाँद नहीं

छाया यहाँ तम का कहर
उजियारे की है आस नहीं

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
224 Views
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