छाया यहाँ तम का कहर
छाया यहाँ तम का कहर
उजियारे है की आस नहीं
आज बहुत गमगीन हूँ
खुशी का आभास नहीं
बहे आँखों से अश्रुधारा
मुस्कराहट का वास नहीं
यह दुनिया है बैगानों की
अपना कोई खास नहीं
फ़रेबी हैं लोग यहाँ पर
सच्चों की तालाश नहीं
अंजुमन में हैं लोग बहुत
दिलबर आस पास नहीं
कोहरा यहाँ निराशा का
आशाओं की शाम नहीं
मय तो हम पीते हैं बहुत
मयखाने में मय ही नहीं
नभ में बादल छाये बहुत
नजर आती बरसात नहीं
सागर तो बहुत व्यापक है
नाल में रखा पतवार नहीं
शाम तो रंगीन बहुत यहाँ
यहाँ साकी और जाम नहीं
बादल तो छंट गए हैं यहाँ
धूप का नामोनिशान नहीं
बगिया में खिले फूल बहुत
महकान का यहाँ वास नहीं
तारों भरी रात चमक रही
नजर आता यहाँ चाँद नहीं
छाया यहाँ तम का कहर
उजियारे की है आस नहीं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत