छाई है काली घटा घन घोर
छाई है काली घटा घन घोर
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छाई बहुत काली घटा घनघोर
गरज रहे बादल यहाँ पुर जोर
सुनाई दे तूफांं,आँधी का शोर
बरसेंगे आज बादल जोर शोर
मंडराते मेघों की घनी गर्जन
शंख ध्वनि बन करे उदघोषण
बादल बरसते,बारिश का शोर
छिपें गए पक्षी और डंगर-ढोर
छाने लगा बहुत घना अन्धेरा
नजर नहीं आता कोई चेहरा
पोह माघ की ठण्ड पाया घेरा
शीत हवा ने हटा दिया कोहरा
रवि बिना दिन-रात नहीं होते
मेघों में चाँद – तारे छिप जाते
रातें लंबी ,दिन छोटे हो जाते
काम धंधें सभी हैं रुक जाते
टिप -टिप छत पर गिरती बूँदें
टपकता छत,सोने नहीं दें बूँदें
सुखविंद्र सागर भरती हैं बूँदें
प्यास मिटाती मोतियों सी बूँदे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)