छलकते आंसू
आंखों में क्यों आ जाते हैं आंसू
आकर के क्या जतलाते हैं आंसू,
चोट लगती है जब शरीर पर,
आह उभरती है तब मुख पर,
तब निकलने लगते हैं आंसू
पीडा ब्यक्त करते हैं आंसू
जब अनायास दिल दुखता है,
अंतर मन ब्यथित हो उठता है,
कुछ कहते हुए नहीं बनता है,
तब भी आंखों से आंसू बहता है!
जब कभी भय लगता है,
आस पास कोई नहीं रहता है,
तब ब्याकुल होकर मन मचलता है,
और उस समय कोई दिखता है,
उस वक्त भी मदद मांगने को,
चिखता हुआ वह रोने लगता है,
तब भी आंखों में उम्मीद जताते हुए दिखता है आंसू,!
पर यही अंतिम सत्य नहीं है,
खुशियां मिलने पर भी आंसू झलकते हैं,
हमारे हंसते हुए भी आंखों से आंसू टपकते हैं,
हम भाव विभोर होकर मचलते हैं,
ऐसे में भी अक्सर आंसू निकलते हैं!
इसके अतिरिक्त कब आते हैं आंसू
यह समझना मुश्किल है भारी,
तब कोई जब बहाता है आंसू,
मन हो जाता है विचलित,
क्यों बह रहे हैं इसकी आंखों में आंसू,
दिल पसीज जाता है हर किसी का,
पुछ लेते हैं हम उसी से,क्यों क्या बात हुई है,
किस बात पर बह रहे हैं तुम्हारे आंसू!
कभी कभी जज्बात को उकेरते हैं आंसू,
छलने को छलकाए जाते हैं आंसू,
अन्यथा जब होती है चाहत दिलाशा जताने की,
लोग बहाने लग जाते हैं आंसू,
वह क्या करने को ढुलकाते हैं आंसू,
जिन्हें पोंछने थे दीन दुखियों के आंसू
वह क्या जतलाने को बहाते हैं आंसू!
ऐसे आंसूओं से सदैव डर लगता है,
ऐसा मेरा अनुभव कहता है!
आखिर क्यों इनकी आंखों में आए हैं आंसू,
आकर क्या जतला कर गए हैं ये आंसू!!