छम-छम बदरा बरस रहा है
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छम-छम बदरा बरस रहा है।
विरहन मन ये तरस रहा है।
शीतल पवन चले आरी-सी,
बूंद-बूंद फिर विहस रहा है।
आग कलेजे में धधकी यूं,
नस-नस मद में लनस रहा है।
गाज गिरे ऐसे मौसम पर,
झरी नेह की परस रहा है।
कैसे धीर धरूँ साजन जी,
दर्द भरा जब दिवस रहा है।
सुध-बुध खो देती है मेरी,
तुम बिन जीवन निरस रहा है।
एक दूजे के चिर प्रेम में,
लीन प्रिये दिन सरस रहा है।
? ? ? ? – लक्ष्मी सिंह ? ☺