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24 Jun 2018 · 1 min read

छम-छम बदरा बरस रहा है

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छम-छम बदरा बरस रहा है।
विरहन मन ये तरस रहा है।

शीतल पवन चले आरी-सी,
बूंद-बूंद फिर विहस रहा है।

आग कलेजे में धधकी यूं,
नस-नस मद में लनस रहा है।

गाज गिरे ऐसे मौसम पर,
झरी नेह की परस रहा है।

कैसे धीर धरूँ साजन जी,
दर्द भरा जब दिवस रहा है।

सुध-बुध खो देती है मेरी,
तुम बिन जीवन निरस रहा है।

एक दूजे के चिर प्रेम में,
लीन प्रिये दिन सरस रहा है।
? ? ? ? – लक्ष्मी सिंह ? ☺

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